मेरा बलमा बड़ा है अनाड़ी सखी
रात – रात भर सुलगाये चिंगारी सखी.
मैं खाऊं रोटी, वो तरकारी सखी.
मेरा बलमा बड़ा है अनाड़ी सखी-२.
कभी मांगे बोरसी, कभी चूल्हा के आगी सखी
मेरा बलमा बड़ा है अनाड़ी सखी.
कभी दुआरा, कभी अंगना में डाले चारपाई सखी
मेरा बलमा बड़ा है अनाड़ी सखी.
मैं बंगालन सुन्दर – सलोनी,
वो काला – निठल्ला बिहारी सखी
मेरा बलमा बड़ा है अनाड़ी रे सखी.
रोज रख दे मेरी कमर पे कटारी सखी
मेरा बलमा बड़ा है अनाड़ी सखी.
कभी मांगे मुर्ग – मसल्लम, कभी चुरा और दही सखी
मेरा बलमा बड़ा है अनाड़ी रे सखी.
गयी थी चराने अपनी गाय, फंस गयी उसके बथानी सखी
मेरा बलमा बड़ा है अनाड़ी रे सखी.
परमीत सिंह धुरंधर