हर दर्द का रस पीना है
यही गीता का संदेस है.
विषपान से ही आता
कंठ पे कालजयी तेज है.
जितना तपती है धरती
सींचता उसे उतना ही मेघ है.
हर दर्द का रस पीना है
यही गीता का संदेस है.
परमीत सिंह धुरंधर
हर दर्द का रस पीना है
यही गीता का संदेस है.
विषपान से ही आता
कंठ पे कालजयी तेज है.
जितना तपती है धरती
सींचता उसे उतना ही मेघ है.
हर दर्द का रस पीना है
यही गीता का संदेस है.
परमीत सिंह धुरंधर