पतली कमर पे जवानी का नशा
ढूंढ रहीं हूँ गली – गली में पिया।
सूना है कोई है छपरा का धुरंधर
सखी
उसी के संग अब बिछाऊँ गी खटिया।
कैसे पड़ गयी तू उसके हथकंडे?
निर्दयी, निर्मोही, वो तो है शातिर बड़ा.
तू जल रही है शायद
आफताब ने कहा की वो है भोला बड़ा.
कैसे पड़ गयी तू इन दोनों के हथकंडे?
दोनों की यारी, है दांत-कटी यहाँ।
परमीत सिंह धुरंधर