हर शाम जल उठता हूँ चिरागे -दर्द बनकर
ना मैं किसी चाँद का हुआ, ना रात का हुआ.
यूँ मुफलिसी में आ गया हूँ इस कदर
ना मैं किसी घर का हुआ, ना घाट का हुआ.
मत पूछों हाल – जिंदगी मेरी
ना मैं जाम का हुआ, ना पैगाम का हुआ.
वो उजड़ कर भी आबाद हो गयीं
ना मैं मिट्टी का हुआ, ना हवाकों का हुआ.
परमीत सिंह धुरंधर
Aap Chand k na huye to kya hua but Chand jaroor aap ka hoga😊😊😊
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Thank you very much Saba Jee
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Welcome dear 😊
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for you Saba jee….
दूर – दूर तक मेरे शुभचिंतक फैलें हुए हैं
और जमाना सोचता है की हम अकेले हैं.
यह रंग ही गजब है छपरा की मिट्टी का
और जमाना हमें ही धुरंधर समझे हुए है.
परमीत सिंह धुरंधर
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