बागी – बलिया
विद्रोही – बाबा
लोहिया
के थाती
से उपजे हैं
निकले हैं
पनपे हैं.
यूँ ही नहीं हम बिगड़ैल हैं.
राजेंद्र बाबू के
पाठशाला से
जयप्रकाश के
गौशाला से
बुध और गुरु गोविन्द
के गांव से
महेंद्र मिश्र के तान से
हम पले – बढ़े
रचे – बसे हैं.
यूँ ही नहीं लोग हमें
छपरा – का – धुरंधर, बुलाते हैं.
परमीत सिंह धुरंधर