तू भी है राणा का बंसज
फेंक जहाँ तक भाला जाए.
मधुवन के शौक़ीन सभी हैं
तो रण में बिगुल कौन बजाए?
धर्म-अधर्म की बाते छोड़
गांडीव पे अब तीर चढ़ा.
उनकी आँखों में बस छल है
फिर क्यों तू अपना प्रेम दिखाए?
छल-कपट में पारंगत वो
तू फिर क्यों नियम गिनाए।
वो चढ़ आए रणभूमि तक
लहू के तेरे प्यासे होकर।
फिर क्यों तू खुद को यूँ
रिश्तों में जकड़ा पाए.
तू भी है राणा का बंसज
फेंक जहाँ तक भाला जाए.
Two lines (तू भी है राणा का बंसज. फेंक जहाँ तक भाला जाए. ) were written by Dr. Kumar Vishwas.
परमीत सिंह धुरंधर