ये शहर
बहुत नाउम्मीदों के समंदर से गुजरा है
फिर से इसकी उमिद्दों के चिराग ना बुझावो।
तुम्हे सल्तनत बसानी है
तो बसा लो अपनी सल्तनत
मगर अपनी सत्ता के लिए फिर से अँधेरा न फैलाओ।
परमीत सिंह धुरंधर
ये शहर
बहुत नाउम्मीदों के समंदर से गुजरा है
फिर से इसकी उमिद्दों के चिराग ना बुझावो।
तुम्हे सल्तनत बसानी है
तो बसा लो अपनी सल्तनत
मगर अपनी सत्ता के लिए फिर से अँधेरा न फैलाओ।
परमीत सिंह धुरंधर