जो तन्हा है
वो Crassa तो नहीं है.
जिसे प्यार मिल गया
उसे वक्त ने तरासा तो नहीं है.
दो-बूंदों में लहलहा जाए जो फसल
उसमे किसान का पसीना तो नहीं है.
जिन्हे अपने इतिहास का ज्ञान नहीं
उन राजपूतों की कोई गाथा तो नहीं है.
हर शहर की किस्मत में मेरा साथ नहीं
ऐसा शहर भी नहीं, जहाँ मेरी चर्चा नहीं है.
छपरा की मिट्टी पे जो भी फूल खिला
उसे हवाओं ने बांधा तो नहीं है.
परमीत सिंह धुरंधर