नयना जब तुमसे मिले
तो एक सिहरन सी उठी अंग-अंग में मेरे
और मैं संवर गयी.
सखियाँ मेरी जो ना समझी
मेरे ह्रदय को
देख के दर्पण
मैं स्वयं वो सब समझ गयी.
परमीत सिंह धुरंधर
नयना जब तुमसे मिले
तो एक सिहरन सी उठी अंग-अंग में मेरे
और मैं संवर गयी.
सखियाँ मेरी जो ना समझी
मेरे ह्रदय को
देख के दर्पण
मैं स्वयं वो सब समझ गयी.
परमीत सिंह धुरंधर
Kyaa khoob likha hai apne…
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Thanks Ajay jee for your kind support and appreciation!!
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