जाग अ – जाग अ हो शिकारी जाग अ
जाग अ – जाग अ हो शिकारी जाग अ.
तन – मन के आलस त्याग अ
जाग अ – जाग अ हो शिकारी जाग अ.
प्रभाकर चढ़ के आ गइलन अम्बर पे
तू हू अब अपना रथ के उतार अ.
जाग अ – जाग अ हो शिकारी जाग अ
जाग अ – जाग अ हो शिकारी जाग अ.
मन के बांधल जाला, तन के ना बांधे पौरष
निंद्रा-देवी से कह द, आपन बोरिया – बिस्तर बाँधस।
जाग अ – जाग अ हो शिकारी जाग अ
जाग अ – जाग अ हो शिकारी जाग अ.
कलरव-गान करके खगचर भरे उड़ान
तहरा देह के इ कइसन लागल थकान।
छू ने को आसमान तू भी हुंकार भर अ
जाग अ – जाग अ हो शिकारी जाग अ.
परमीत सिंह धुरंधर
बहुत बढ़िया
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