मैंने चाहा जिस समंदर को
उस समंदर की अपनी हैं गुस्ताखियाँ।
जिन लहरों पे मैंने बिखेर दिया पाने ख्वाब
वो ही लहरें डुबों गयीं मेरी किश्तियाँ।
मजधार में मुझे बाँध कर
साहिल पे बसा रहीं हैं गैरों की बस्तियाँ।
परमीत सिंह धुरंधर
मैंने चाहा जिस समंदर को
उस समंदर की अपनी हैं गुस्ताखियाँ।
जिन लहरों पे मैंने बिखेर दिया पाने ख्वाब
वो ही लहरें डुबों गयीं मेरी किश्तियाँ।
मजधार में मुझे बाँध कर
साहिल पे बसा रहीं हैं गैरों की बस्तियाँ।
परमीत सिंह धुरंधर