तुमसे आगे कौन?


तुम्ही वशिष्ठ, तुम्ही नारायण
तुमसे आगे कौन?
वृहस्पति का आशीष तुम्हे
फिर तुमसे आगे कौन?
धरा भी विचलित हो जाती थी
जब अँगुलियों में कलम खेलती थी
अब जाने गलत हो जाए प्रमेय कौन?

बाल – क्रीड़ा में, साइंस -कॉलेज में
एक से एक उदण्ड
उनमे तुम प्रखर ऐसे
जैसे अम्बर पे मार्तण्ड।
तुमसे मिल कर केली भी ऐसे
विस्मित -वशीभूत
की ज्ञान के इस सागर का
मोल लगाए कौन?
ऐसे ही लाल से, माँ होती है धन्य
अब कहाँ, किसपे ममता लुटाये कौन?

My tribute to the great mathematician of Bihar late Vashishtha Narayan Singh.

परमीत सिंह धुरंधर

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s