तेरे दो नैना गोरी, चाँद को ललचाये रे
कैसे थामें दिल धुरंधर, जब कमर तेरी बलखाये रे?
छोड़ दूँ छपरा, छोड़ दू कचहरी
डाल दूँ खटिया आँगन में
जो तू जुल्फों में सुलाए रे.
डाल के कजरा, छनका के पायल
जवानी के आग में, तू छपरा को झुलसाए रे.
लहरा – लहरा के तेरा आँचल, बादल को पागल बनाये रे.
छोड़ दूँ छपरा, छोड़ दू कचहरी
डाल दूँ खटिया आँगन में
जो तू जुल्फों में सुलाए रे.
परमीत सिंह धुरंधर