धुप में ना निकलो, यूँ हजार रंग ले कर
तड़पती है दुनिया दोपहर में जल-जल कर.
सबकी निगाहें प्यास में डूबीं हैं
उसपे ऐसे न तडपावों तुन यूँ घूँघट में छुप-छुप कर.
मन है व्याकुल, जाए तो जाए किधर
भटकावों ना तुम हमें यूँ राहें बदल-बदल कर.
परमीत सिंह धुरंधर
धुप में ना निकलो, यूँ हजार रंग ले कर
तड़पती है दुनिया दोपहर में जल-जल कर.
सबकी निगाहें प्यास में डूबीं हैं
उसपे ऐसे न तडपावों तुन यूँ घूँघट में छुप-छुप कर.
मन है व्याकुल, जाए तो जाए किधर
भटकावों ना तुम हमें यूँ राहें बदल-बदल कर.
परमीत सिंह धुरंधर