इन आँखों का असर देख साकी
पी मैं रहा हूँ, झूम तू रही है.
अंग ये पुष्प से, खिल उठे हैं धुप में
ऐसी क्या बात है गोरी, तू छुप रही है शर्म से.
तू कहे तो रंग दूँ, आज तुझे अपने रंग में
फिर नहीं आएगा ये मौसम किसी सर्द में.
विचारधारा अलग-अलग है
पर हम एक हैं, हिन्दोस्तान हमारा है.
परमीत सिंह धुरंधर