कौन कहता है की इश्क़ में मजा नहीं?
हँस रहा हूँ या रो रहा हूँ, खुद को ही पता नहीं।
कौन कहता है की हुस्न वफादार नहीं होता?
थोड़ा उछालो, खनकावो या बिछा दो,
सिक्के सोने के, चांदी के, फिर देखो
वैसी कोई रात कभी आती नहीं।
समंदर आज भी शिकारी है
ये तो लोग हैं जो किनारों पे घर बनाने लगे हैं.
परमीत सिंह धुरंधर