ए पहाड़
तुझे कोई मिटाना चाहता है
की तू ब्रह्मिणवाद की पहचान है.
तुझे कोई अपना कहता है
तुझे बचाना चाहता है
की तू उनके अपने जंगल का है.
फिर कौन है तू?
वो बाते करते हैं तेरी
पर तेरे अस्तित्व की नहीं।
जो तुझे जंगल का कहते हैं
उन्हें ना जंगल की चिंता है, ना तेरी
उनको डर हैं अपने पहचान की
अपने पिछड़ जाने की इस दौड़ में।
जो तुझे ब्राह्मणों का कहते हैं
उन्हें तुझसे तो कोई भय नहीं
तू जड़ है, स्थिर है, मूक है, अहिंषक है
फिर ये तेरा ऐसा, भीषण विरोध कैसा?
परमीत सिंह धुरंधर