चूड़ी संभालीं की पायल संभाली
चोली – चुनर में हलचल उठsता।
कहिया ले जोगाइन धन राजा के हम?
पडोसी रतिया के छप्पर लाँघsता।
कौगो चिठ्ठी आ पाती पठइनि
सुनी ए राजा, मन अब बाँध तुरsता।
का कहीं सखी, अब आपन परेशानी
जोबना भी अब गोद में किलकार मांगsता।
परमीत सिंह धुरंधर