चंद – मुलाकातों में दिल भर गया सनम का
अब गैरों के दिल को बहलाया जाएगा।
शौक ऐसे चढ़ा है दिल पे उनके लबों का
ए साकी जाम ये हलक से उतर न पायेगा।
इन 18 सालों में वो बेताब हैं बनने को दादी,
मेरी इस बेताबी को अब नहीं मिटाया जाएगा।
ऐसे रौशन कर रही हैं वो अपने घर को
मेरे आँगन से अन्धेरा मिट न पायेगा।
और क्या होगी सितम की रात इससे बढ़कर?
मेरा दिया, मेरे घर को ही जला जाएगा।
ना पूछों दर्दे-दिल की दवा हमसे
तुमसे ऐसा दर्द न उठाया जाएगा।
परमीत सिंह धुरंधर