पिता और मैं, जैसे
सुबह की लालिमा
और चाँद की शीतलता
दोनों एक साथ
जिसका स्वागत करते
पक्षीगण कलरव गान से.
पिता और मैं
सुसुप्त अवस्था में
जैसे कोई ज्वालामुखी
और बहुत अंदर उसके सीने में
कहीं आग सा धड़कता मैं.
पिता और मैं, जैसे
छपरा का कोई धुरंधर
त्यागकर अपनी चतुराई
और चतुरंगी सेना
बना मेरा सारथि
और कुरुक्षेत्र में उतरता
नायक बन कर मैं.
पिता और मैं, जैसे
शिव और भुजंग
पिता और मैं, जैसे
हरी और सुदर्शन
पिता और मैं, जैसे
सूर्य और अम्बर
पिता और मैं, जैसे
श्री गणेश और मूषक।
परमीत सिंह धुरंधर