यूँ ना दिल को मेरे तोड़ो
ये रातों का नशा नया है
अभी-अभी तो निगाहें लड़ी हैं
अभी-अभी तो शर्म का पर्दा गिरा है.
दो पल ही सुला कर जुल्फों में
ऐसे ना बिजली गिरावों
अभी-अभी तो सावन बरसा है
अभी-अभी तन -मन ये भींगा हैं.
परमीत सिंह धुरंधर
यूँ ना दिल को मेरे तोड़ो
ये रातों का नशा नया है
अभी-अभी तो निगाहें लड़ी हैं
अभी-अभी तो शर्म का पर्दा गिरा है.
दो पल ही सुला कर जुल्फों में
ऐसे ना बिजली गिरावों
अभी-अभी तो सावन बरसा है
अभी-अभी तन -मन ये भींगा हैं.
परमीत सिंह धुरंधर