मैं तो मुंबई से पहले ही परास्त हुआ
तुम तो मुंबई तक पहुँच गए.
मैं अपने पहली ही जंग में हार गया
तुम तो कितने जंग फतह कर गए.
यह लड़ाई न मेरी है, ना यह जंग तुम्हारी थी
ये जंग हमारी है, हाँ ये जंग हम सबकी है.
यह जंग है,
हमारे सपनों की उनके गुनाहों से
हमारे अधिकारों की उनकी सत्ता से
हम छोटे शहर की चींटियों की
इन जंगल के हांथियों से.
चाणक्य की
धनानंद के उन्माद और अहंकार से.
आज भले हम हार गए
आज भले दूर -दूर तक
हमारे सितारे धूमिल हैं.
मगर हम शिवाजी के छोटे झुण्ड में आते रहेंगें
और लुटते रहेंगे इनके महलों को
इनकी खुशियों को, तब तक
जब तक औरंगजेब की इस सत्ता
को नष्ट ना कर दे,
तबाह ना कर दे.
हम चीटिंयां हैं चाणक्या के
हम चिड़ियाँ हैं गुरु गोबिंद सिंह जी के
हम कटेंगे, हम गिरेंगे, पर लड़ेंगें तब तक
जब तक विजय श्री हमारी नहीं।
आज चाहे जितना उत्सव माना लो मेरे अंत का
कल तुम्हारा जयदर्थ सा अंत करेंगे।
परमीत सिंह धुरंधर