ना मांग मुँह खोल के इस जमाने से ए दोस्त
अब कहाँ वैसे रिश्ते बचे हैं?
ना मायूस हो कर देख गमे-जिंदगी को
अभी तो जिंदगी के कई दौर बचे हैं.
सिसक -सिसक के नहीं, घूम-घूम के जी लेंगें
अभी तो किस्मत के कई सितारे बचें हैं.
मोहब्बत और सियासत में ना भरोसा कर किसी का
यहाँ पैसों की खनक पे दिल बिकें हैं.
ना ये शहर किसी का, ना हुस्न ही किसी का
इसी शहर में उसने कई शौहर रखें हैं.
परमीत सिंह धुरंधर