पिता और मेरा प्रेम
जैसे गंगा की लहरों पे
उषा की किरणें
और प्रकृति मुस्करा उठी.
हर्षित पिता मेरी उदंडता पे
उन्मादित मैं उनकी ख्याति पे
पिता -पुत्र की इस जोड़ी पे
प्रकृति विस्मित हो उठी.
अभी जवानी चढ़ी ही थी
अभी मैं उनके रथ पे चढ़ा ही था
की प्रकृति ने
विछोह की घड़ी ला दी.
Rifle Singh Dhurandhar
🙏🙏👌👌
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Thanks a lot for your appreciation!!!
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😊😊
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अति सुंदर अभिव्यक्ति ।
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thanks a lot for your appreciation!!
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