दिल का अनाड़ी
शहर में खिलाडी
करता हूँ साइकल की सवारी
ऐसा मैं बिहारी
ना अटकी है, ना अटकेगी
कहीं भी, कभी भी अपनी गाड़ी।
छपरा का छबीला
पटना का बादशाह
मराठों संग सजाई थी सल्तनत अपनी
ऐसा मैं बिहारी
ना अटकी है, ना अटकेगी
कहीं भी, कभी भी अपनी गाड़ी।
उस्तादों को पटका
हुस्नवालों को रंगा
दोस्तों का हूँ यार जिगड़ी
ऐसा मैं बिहारी
ना अटकी है, ना अटकेगी
कहीं भी, कभी भी अपनी गाड़ी।
भीड़ में अकेला
अकेले में भीड़
दोस्तों ने कहा, “मानुस है भारी”
ऐसा मैं बिहारी
ना अटकी है, ना अटकेगी
कहीं भी, कभी भी अपनी गाड़ी।
Rifle Singh Dhurandhar