मुझसे ना पूछ
ए जमाना
मेरे महबूब का नाम.
मेरे अश्क
उसकी तस्वीर बना देंगें।
तुम्हे क्या पड़ी
मेरे दर्द की?
उसका रूप
तुम्हारे दिल में भी
दर्द जगा देंगें।
लौट गए इतने सावन
मेरे दर से
अब बहारें आके भी
क्या कर लेंगी?
जो वो अपना घूँघट उठा देंगें।
Rifle Singh Dhurandhar