दीप जलाती हूँ, गोविन्द।
पुष्प चढाती हूँ, गोविन्द।
कुछ नहीं मांगती हूँ,
बस दिल लगाती हूँ गोविन्द.
जग समझे तुम्हे मूरत माटी की,
मैं तो सुनती तुम्हारी मुरली हूँ-२.
गीत गाती हूँ गोविन्द,
गुनगुनाती हूँ, गोविन्द
थिरकती हूँ, नाचती हूँ गोविन्द।
जग समझे मीरा, मति हारी
मैं तो सुनती तुम्हारी मुरली हूँ-२.
कैसे रोकूं खुद को तुमसे?
कहाँ कोई दुरी रह गई हम में?
जग समझे मीरा हो गई बावरी
मैं तो सुनती तुम्हारी मुरली हूँ -२.