ये मस्तियाँ जो रह गयीं ख़्वाबों के नीचे
ये जो इल्म होता तो हम बगीचे में सो लेते।
इश्क का नशा, हैं बस दर्द से भरा
ये जो इल्म होता तो हम यूँ कैद ना होते।
जुल्फ की छावं भी हैं काँटों से भरी
ये जो इल्म होता तो हम आगोस में ना आते.
सारे जहाँ के हुस्न का एक ही रंग है बेवफाई
मीर-ग़ालिब को ये जो इल्म होता तो हम ना कहते।
Rifle Singh Dhurandhar