मौजों ने साहिल तक आते-आते अपना रंग बदला है
सज-धज के निकली थीं, अब सादगी का चोला है.
संग सांखियाँ थीं, जवानी थी, अल्हड सब, मस्तानी थीं
आते-आते यहाँ तक सबको बिछुड़ना है.
ऊँची हसरते लेकर निकले थे जो लम्बी उड़ान पे
ऐसे मंजे उस्तादों को भी अंत में हाँ थकना है.
Rifle Singh Dhurandhar