जिसकी जुल्फों में बंधने को पुष्प-पवन है बेकरार
वो संयोगिता पूछती है कहाँ हो मेरे पृथ्वीराज?
जिसके मुख के आभा से चंद्र हुआ है परास्त
वो संयोगिता पूछती है कहाँ हो मेरे पृथ्वीराज?
हार रही है दुखियारी, टूट रहा मन का हर आस
प्रीत परायी हो जाए, उसके पहले रख लो लाज.
कहाँ हो मेरे पृथ्वीराज? कहाँ हो मेरे पृथ्वीराज?
RSD