कई फैसले जिंदगी के रुलाते हैं हर घडी
ना कोई सुकून हैं, ना कोई मंजिल ही.
इंसान को हर पल में सोचना है यही
की कितनी प्यास है और कितना पीना है जरुरी?
ता उम्र मैं भागता रहा जिन चाहतों के पीछे
पाकर उनको भी प्यास मिटती तो नहीं।
ए खुदा क्या लिखी है किस्मत मेरी?
हर दर्द की दवा है, बस मेरे ही दर्द की नहीं।
मुस्करा रहा है वो आज भी मुझे ही देख कर
की वक्त के साथ हालात मेरे बदलते ही नहीं।
हुस्न की वेवफाई पे कितना लिखूं ?
एक रात के बाद वो पहचानता भी नहीं?
कस्मे-वादे पे ना जाइये इनके, इनके आँचल में,
फरेब के आलावा कुछ मिलता भी नहीं।
क्या सोच कर हुस्न को बनाया था खुदा, ये बताना कभी?
जिस दर्द में हम जी रहे हैं, क्या उसे उठाया है कभी?
RSD