आँखे मेरी, तुम्हारे दरस की प्यासी
प्यास मिटा दो हे अविनाशी।
सबको यहाँ, मिल गया कुछ -ना – कुछ
कब होगी प्रभु, हमपे कृपा तुम्हारी।
क्षमाप्राथी है ह्रदय मेरा, भुला कर पाप मेरे
अब तो चखा दो भांग अपनी ये मीठी।
कब तक रखोगे यूँ दूर-दूर अंक से अपने?
चरणों में तुम्हारे पिता, सिमटी है दुनिया ये सारी।
सबकुछ भुलाकर बस इतना ही चाहा
जन्म-जन्म तक धोता रहूं चरण तुम्हारी।
आँखे मेरी, तुम्हारे दरस की प्यासी
प्यास मिटा दो हे अविनाशी।
RSD