ना हारा है परमीत
ना मंताज थकी हैं.
फिर ये कैसी है दूरी
कैसी बेबसी हैं?
चाँद निकलता है रोज
मेरे अम्बर पे
फिर भी मेरे आँगन में
रौशनी की कमी है.
ना रुका है परमीत
ना मंताज बदली है.
फिर क्यों मंजिल हमारी
हमसे रूठी है.
RSD
ना हारा है परमीत
ना मंताज थकी हैं.
फिर ये कैसी है दूरी
कैसी बेबसी हैं?
चाँद निकलता है रोज
मेरे अम्बर पे
फिर भी मेरे आँगन में
रौशनी की कमी है.
ना रुका है परमीत
ना मंताज बदली है.
फिर क्यों मंजिल हमारी
हमसे रूठी है.
RSD