मेरी आँखों का हैं तू ही नशा
मैं देख रहा हूँ तुझको रात-रातभर
आसमा के तले.
कोई तितली सी, उड़ कर कभी
छू गयी मेरे दिल को अपने पंखों से
मैं भुला नहीं आज तक
वो टकराई थी आके जो मेरी राहों में.
तुम्हारी जवानी एक मीठी आंच है
जिसपे रोटी पक जाए, सब्जी बन जाए
दाल-चावल सब पक जाए
फिर भी जो सुलगती हर रात है.
तुम्हारा हुस्न एक तेज़ाब है
जिसे जो छू ले, वो जलता हर एक रात है.
तुम सवरों तो बादलों में बिजली है
तुम चलों तो बलखाती हिरणी है
तुम्हारी झुकी पलके जैसे ठहरी हुई नागिन
हम तेरे करीब आने की दुआ भी करें तो क्यों ?
तेरे करीब से जजों भी गुजरा वो मयखाने में साथी है.
तुझे मांगें भी खुदा से तो क्या ?
कहहुदा खुद तुम्हे बना के फंस गगया अपनी चाल है.
तुम्हारी किताबों में मेरा एक पन्ना है
समय मिले तो पढ़ लेना, लिखा कुछ अच्छा है
तुम बैठती हो अपनी सहेलियों से लिपट कर
जो अगली पंक्ति में
हमने जाना की लड़की होना भी कितना अच्छा है
सुबह-सुबह जब तुम आती हो
खुली भींगी जुल्फों में फूल लगाकर
सौ साल की जिंदगी से एक दिन का खिलना कितना अच्छा है.
खूबसूरत है जवानी
तो तुम मेरी रानी
सहोगी मनमानी
अब रात भर, अब रात भर.
कौन कहता है हुस्ना वेवफा है
ये भी तो अरे उसकी एक अदा है.
केकरा से कही जाके ससुरा के हाल रे
सैयां अनाड़ी बारां, देवरा चालाक रे
दिन भर बइठल रहे छनि पे चढ़ के
सैया खटस कहता, देवरा इ खाट पे.
हसीं तेरी चाहत में यूँ तो नग्मे हज़ार मिलें
सबमे टुटा था पर दिल, आशिक सारे बीमार मिले
तूने लुटा एक-एक को ऐसे, जैसे उषा तिमिर को हरे
जिसने भी पुकारा तुझे वो तड़पते लाचार मिले।
तुझको भोगा जिसने, उसे क़द्र ना तेरी
जिसने क़द्र की तेरी वो बिकते बाज़ार मिले।
जब तक तू दूर है मेरी है
जब तू मेरी है तो दूर कहाँ?
तेरे नयनों में रंग बहार के है
मैं बिहार का हूँ तू चल मेरे साथ.
तू मुस्काये तो धुप खिल जाए
मैं कांधों पे लिए हल हूँ, तू चल मेरे साथ.
तेरी जुड़ों में फूल जैसे लिट्टी में घी
तुहे पीना है सतुआ तो आजा मेरे साथ.
जिस मिट्टी से राजेंद्र प्रसाद और जयप्रकाश
तुझे बसाना हो ससुराल छपरा तो आजा मेरे साथ.
तेरे सफर की तन्हाईयाँ मंजिल पे तेरी शहनईया हैं
किस्मत से जंग में मेरे दोस्त, फतह से पहले सिर्फ और सिर्फ रुस्वाइयाँ है.
चल, सिर्फ चल बिना थकान और मंजिल के चिंता के
तेरे कदम को चूमने वाले कांटें परिछाइयाँ हैं.
जोगी तहरा से मिले आयें सांझ के
सैया रहे लागल बारां घरे रात के.
ऐसे मत जा छोड़ के हमारा गावं के
के बरसाई अब बरखा प्यार के.
अभी खा ल सखी के हाथ से दाल-भात के
आएम त खिलायेम पुआ छान के
भय, भय टांको नइखे अब देह में
कहब त भागचलेम तहरा ही साथ में.
खुदा ने लिखा सबसे महँगी मोहब्बत मेरे लिए
बस मेरी किस्मत में दौलत को लिखना भूल गया
खुदा ने तरासा उनके जिस्म को बारीकी से मेरे लिए
बस मुझको तरसना भूल गया
खुदा ने मुझे दी सीरत और उनके दिल में
सीरत की चाहत डालना भूल गया
खुदा ने बनाई शादी की लकीरें मेरे और उनके दोनों ही के हाथों में
मगर जन्नत में ये जोड़ी लिखना भूल गया.
मैं तड़पता रहा जिस प्यास को लिए
तुम उस दरिया को लिए बैठी रही
ना प्यास मिटा, ना दरिया सूखी
मोहब्बत यूँ ही अधूरी रही
RSD