आजादी के इस पावन संध्या पे,
सत्य को नमन.
गांधी के बढ़ते भक्तो से मिलने,
मैं एक बस्ती में गया.
सोचा कुछ समय ग़ांधी के,
अनुवाइयों के संग जी लूँ.
बस्ती में जाते ही सुखद अनुभव हुआ,
हर शख्श के तन पे खादी,
और खादी के बस्त्रो पे गांधी की तस्वीर।
पर ये क्या दो दिन भी नहीं हुआ,
और ये क्या गंदगी की बदबू आने लगी.
मैंने देखा,
उनके मन में आज भी डर, लालच,
और नारी का लोभ है.
ग़ांधी के तस्वीर पहन कर भी,
वो सच नहीं बोल पाते,
ना सच कह पाते हैं.
उस बस्ती में सारे ग़ाँधीवादियों ने,
एक नारी का शोषण किया।
उसका बलात्कार किया।
अन्ना हज़ारे के आंदोलन में दिन में,
चिल्लाने वाले,
रात के अँधेरे में एक अकेली लड़की,
को रुलाते थे, नोचते थे.
जब लड़की ने इस शोषण के,
खिलाफ आवाज उठाई,
तो सारे अन्ना हज़ारे के चेले,
गांधी के पुजारी ने उल्टा उसे ही,
बदचलन साबित कर दिया।
मुझे दुःख इस बात का जानकार हुआ की,
उस बस्ती की नारियां,
जो राम को नहीं पूजती,
वो भी उस लड़की के पक्ष में नहीं आई.
लेकिन हर दिन अरब के नारियों के दमन,
के खिलाफ उस बस्ती में रैली निकालती है.
भाषण देती हैं, आवाज उठाती हैं.
पर एक अकेली लड़की के आंसूं,
अकेले ही बह गए.
ना गांधीवादी आये, ना अन्ना के चेले।
बस एक नयी बात है,
उस बस्ती में सब पीएचडी कर रहे हैं,
विज्ञान की बातें, बिज्ञान के खेल.
लेकिन असत्य के लिए, पैसे के लिए,
नारियों के जिस्म के लिए, अमेरिका जाने के लिए.
दोहरा जीवन जी रहे ये लोग,
गांधी को क्या समझेंगे,
जो ये नहीं समझ पाएं की,
गांधी का मतलब सत्य है,
सत्य का समर्थन है.
अगर किसी बस्ती में, किसी घर में,
नारी के तन का शोषण हो,
तो हम बिज्ञान तो कर सकते हैं,
गांधीवादी नहीं हो सकते।
अगर हम सत्य न बोल सके तो,
हम गांधीवादी नहीं हो सकते।
और ये अंतर है अन्ना हज़ारे और गांधी में,
एक के चेले सत्य बोल नहीं सकते,
एक के चेले सत्य के लिए सत्ता से टकरा गए.
मेरा नमन सत्य को,
उस पथ को, सी पावन संधया पे.
न की व्यक्ति को.
मेरा नमन इस विश्वास को,
उस नारी को,
जिसने अकेले विज्ञान के,
असत्य के पुजारियों को,
टक्कर दी.
नमन उस आत्मविश्वास को,
उस अकेले टकराने के,
साहस को.
उस आजादी को मन के,
जो भौरा बना देता है,
आजादी के प्रेम में.
परमीत सिंह धुरंधर