मैंने इश्क़ किया उस दरिया से,
जिसकी धारा के कई किनारे हैं.
मैं क्या बाँधूँ उसकी लहरों को,
जो बस खारे – सागर के ही प्यासे हैं.
परमीत सिंह धुरंधर
मैंने इश्क़ किया उस दरिया से,
जिसकी धारा के कई किनारे हैं.
मैं क्या बाँधूँ उसकी लहरों को,
जो बस खारे – सागर के ही प्यासे हैं.
परमीत सिंह धुरंधर
हमने इश्क़ किया जो,
तो समंदर भी रो पड़ा.
हालात ही कुछ ऐसे बन गए,
की तूफ़ान भी डर गया.
किश्ती हमारी,
गैरों की हो गयी,
मजधार में लहरों ने,
किनारा कर लिया।
परमीत सिंह धुरंधर
इश्क़ करो उससे,
जो तुमपे तंज कस दे.
वरना हुस्न तो सदा से बिछता रहा है,
क्रूर शासकों के नीचे।
वो घर बसा दें, या तुम्हे औलादें दे दें,
इसे उनकी मोहब्बत मत समझों।
कुछ तो उनकी भी जरूरतें हैं,
वरना वो यूँ तुम्हारे आगे खामोस नहीं रहते।
परमीत सिंह धुरंधर
मत पूछो इश्क़ में क्या गुजरती है मुझपे रातों को,
समंदर आज तक फीका हैं, जो चख लिया एक बार उन ओठों को.
परमीत सिंह धुरंधर
इश्क़ में ईद हम भी मना ले,
कभी कोई चाँद तो निकले।
होली में रंग तो सभी,
खेल लेते है चेहरा छुपाके।
इश्क़ में दिवाली हम भी मना ले,
कोई एक दिया तो जलाये आँगन में.
परमीत सिंह धुरंधर
खूबसूरत लम्हों में लपेट के जो खंजर चला दे,
वो हुस्न तेरा है.
बिना जुल्फों में सोएं जो ओठों का जाम चख ले,
वो इश्क़ है मेरा।
तुझे गुरुर है जिस योवन पे,
वो ढल जाएगा एक दिन सदा के लिए,
और मैं यूँ हैं चखता रहूँगा योवन का रस,
चाहे रौशनी मेरी आँखों की या आँखे मेरी,
मुद जाए सदा के लिए.
परमीत सिंह धुरंधर
मैं रातों को जलता रहा,
वो दिन भर सुलगती रहीं।
ये प्यार ही तो है जिंदगी,
की हम मिल भी न सके दो घड़ी.
वो मुड़ – मुड़ के देखती रहीं,
मैं हर पल राहें बनता रहा.
ये प्यार ही तो है जिंदगी,
की हम चल भी न सके संग दो घड़ी.
परमीत सिंह धुरंधर
क्या – क्या संभालोगे इस जहाँ में,
एक दिल तो तुम्हारा संभालता नहीं।
इतने ठोकरों को खा के मोहब्बत में,
नदाने-इश्क़ तुम्हारा छूटता नहीं।
परमीत सिंह धुरंधर
इश्क़ रातों को रोता हैं,
हुस्न के पास तो जमाना है मुस्कराने को.
सोचो, उस माँ पे क्या गुजरती होगी,
जिसका बेटा कमाता है, मयखाने में लुटाने को.
परमीत सिंह धुरंधर
हम इश्क़ तुमसे करते रहें, और शिकायत खुद से.
तुम्हारी बेवफाई पे भी, हम अपनी वफ़ा ढोते रहें.
परमीत सिंह धुरंधर