वो मेरे अंगों से खेले,
तो हम समझें की आईने में कमी क्या है.
जमाना कहता है की,
करवा – चौथ मेरे पाँवों की बेड़ियाँ हैं.
वो क्या समझेंगे,
इन बेड़ियों को पहन के मैंने पाया क्या है.
आवो,
कभी सुन ले – सुना ले एक दूसरे को,
की तुमने औरत को हर विस्तर पे सुला के,
उसके संग सो के,
किन उचाईयों पे पहुंचा दिया.
और मैं एक व्रत कर करवा – चौथ का,
कौन सा एहसास जी लिया है.
परमीत सिंह धुरंधर