हे गजानन, आपका अभिनन्दन।


विशाल देह, विशाल कर्ण, विशाल नयन
हे गजानन, आपका अभिनन्दन।

महादेव के लाडले, गौरी – नंदन
हे गजानन, आपका अभिनन्दन।

आपके चरण-कमलों से बढ़कर नहीं कोई बंदन
हे गजानन, आपका अभिनन्दन।

सफल करो मेरे प्रभु अब मेरा भी जीवन
हे गजानन, आपका अभिनन्दन।

नित ध्यायु आपको, करूँ आपका ही श्रवण
हे गजानन, आपका अभिनन्दन।

मैं पापी, मुर्ख, अज्ञानी, जाऊं तो जाऊं किसके अब शरण
हे गजानन, आपका अभिनन्दन।

बस जाओ, हे प्रभु, अब मेरे ही आँगन
हे गजानन, आपका अभिनन्दन।

सुबह-शाम पखारूँ मैं आपके चरण
हे गजानन, आपका अभिनन्दन।

परमीत सिंह धुरंधर

रोम – रोम से गजानन हम आपका गुणगान कर रहे


प्रभु आप जब से जीवन को साकार कर रहे,
रोम – रोम से गजानन हम आपका गुणगान कर रहे.
चक्षुओं को भले प्रभु आपका दर्शन ना मिला हो,
हम साक्षात् ह्रदय से परमानंद का आभास कर रहे.

अद्भुत है आपका अलंकार देवों में,
स्वयं महादेव भी ये बखान कर रहे.
लाड है, प्यार है माँ पार्वती को आपसे,
जग में शक्ति को प्रभु आप स्वयं सम्पूर्ण कर रहे.

मैं भिखारी हूँ, भिक्षुक हूँ दर का प्रभु आपके,
कृपा है प्रभु आप मुझपे नजर रख रहे.
आपके चरण-कमलों में हो मस्तक मेरा भी,
बस इसलिए प्रभु हम आपका नाम जप रहे.

 

परमीत सिंह धुरंधर

गजानन स्वामी मेरे


गजानन – गजानन, प्रभु मेरे,
मुझ पर भी दया दृष्टि करो.
मुश्किलों में है सारी राहें मेरी,
हे विध्नहर्ता, इन्हे निष्कंटक करो.
ज्ञान के आप हो अथाह – सागर,
दिव्य ललाट और विशाल – नयन.
अपने नेत्र-ज्योति से मेरे जीवन में प्रकाश करो.
गजानन – गजानन, स्वामी मेरे,
मेरे मन-मस्तिक में विश्राम करो.
अपमानित हूँ, दलित हूँ,
जग के अट्ठहास से जड़ित हूँ.
आप प्रथम -पूज्य, आप सुभकर्ता,
महादेव – पार्वती के लाडले नंदन।
मेरे मस्तक पे अपना हाथ रखों।
गजानन – गजानन, स्वामी मेरे,
इस अपने सेवक का भी मान रखो.

 

परमीत सिंह धुरंधर