मेरी गृहणी


तन्हाई मेरी इस कदर संगनी बन गयी है,
की संगनी मेरी तन्हा हो गयी है.
दर्पण देख के वो गुंथी है अपने केशुंओं को,
हर एक केशु में मेरी खुसबू को ढूंढती।
बेबसी मेरी इस कदर गृहणी बन गयी है,
की गृहणी मेरी बेबस हो गयी है.
सजती है जिस माथे पे लाल बिंदी लगा के,
उस माथे पे अब चिंता की लकीरे उभरने लगी है.
उदासी इस कदर मेरी जिंदगी बन गयी है,
जिंदगी मेरी अब उदास हो गयी है.

 

परमीत सिंह धुरंधर