घूँघट


दिल धड़क – धड़क के कह रहा है,
मैं समंदर को मथ दूँ.
तू घूँघट तो खोल एक बार बस,
मैं सब कुछ आज अपना बेंच दूँ.

परमीत सिंह धुरंधर