चंद्रशेखर आज़ाद


सारे जमाने से दुश्मनी है,
हर गली में एक दुश्मन है.
जाने कब, किस गली में,
कोई घात लगा दे ?
ऐसे में जब घर लौट के,
रात का खाना खा लेता हूँ.
एक अजब सा अहंकार ह्रदय में,
उठ जाता है.
मुझे बाँध सके, ऐसी कोई हवा नहीं,
और इस तन पे,
जब तक जिन्दा हूँ मैं,
उनका कोई जोर नहीं.

परमीत सिंह धुरंधर