आज की नारी / चरित्र का दोहरापन


वक्षों से ढलकता है,
आँचल,
हर एक पल में.
बिना हवाओं के.
और वो शिकायत करती हैं,
मुझसे की,
मेरी नजरें वहीँ हैं.

परमीत सिंह धुरंधर