अभी तो तुझसे मिली हूँ मैं,
अभी तो हाँ खिली हूँ मैं.
अभी तो चाँद बनी हूँ मैं,
अभी तो महफ़िल में जली हूँ मैं.
अभी न मुझसे ऐसी बात कर,
ए मुसाफिर, मुझे बाँध कर.
अभी तो आँख लड़ी है ये,
अभी तो साँझ ढली हैं ये .
थोड़ा और खुमार चढ़ने दे,
अभी तो साँसे बहकी हैं ये.
मुझे ना, घर की राह दिखा,
ना, बाबुल का नाम बता.
अभी तो प्यास जगी है मेरी,
अभी तो चाहत बढ़ी है मेरी.
परमीत सिंह धुरंधर