हम वीर नहीं तो क्या हैं भला?
बोलों, इस आँगन के.
हम लड़ते रहें,
हम भिड़ते रहें।
जब उजड़ रहे थें,
सब तूफानों में.
तुर्क आएं, तैमूर आएं,
मुग़ल के पीछे, अंग्रेज आएं.
वो कुचलते रहें,
चुनवाते रहें,
हमें जिन्दा ही दीवारों में.
हम टूटते रहें,
हम बिखरतें रहें।
पर बढ़ते रहें,
इन राहों में.
हम जलते रहें,
झुलसते रहें।
पर चढ़ कर,
बलिदानों की वेदी पर.
रखा है तिरंगा,
आज भी आसमानों में.
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परमीत सिंह धुरंधर