चुम्बन


समंदर ही रूठा हो तो क्या ढूंढे किनारा कोई,
मयखाना आज तक है प्यासा, पैमाने टूटे कई.
एक चन्दा के पीछे हैं तारे कई,
चाँद फिर भी अकेला, न मिटा सका दाग कोई.
फूलों से भौरों का रिश्ता क्या समझेगा भला कोई,
एक चुम्बन के पीछे मिलते है दर्द कई.

परमीत सिंह धुरंधर

दर्द


मेरी नज़रों में झांककर,
न देख मेरे दर्द का लिबास।
बस रातें हीं काली हैं यहाँ,
पर जल रहे है दूर तक चिराग।

परमीत सिंह धुरंधर