समंदर ही रूठा हो तो क्या ढूंढे किनारा कोई,
मयखाना आज तक है प्यासा, पैमाने टूटे कई.
एक चन्दा के पीछे हैं तारे कई,
चाँद फिर भी अकेला, न मिटा सका दाग कोई.
फूलों से भौरों का रिश्ता क्या समझेगा भला कोई,
एक चुम्बन के पीछे मिलते है दर्द कई.
परमीत सिंह धुरंधर