माँ के हाथों में दौलत बहुत है


जी रहा हूँ इस शहर में बस तेरा जिस्म देख के,
जिसपे रेशम का दुप्पटा फिसलता बहुत है.
लूटा दी अपनी सारी खुशियाँ,
परदेस में जिस दौलत को कमाने में.
उसे कमाने के बाद हम ये समझे,
की माँ के हाथों में दौलत बहुत है.

 

परमीत सिंह धुरंधर