जवानी के तीर थे,
नजर को मशहूर कर गए.
जब – जब ढलका उनका आँचल,
शहर में सरे – आम, कत्ले – आम कर गए.
परमीत सिंह धुरंधर
जवानी के तीर थे,
नजर को मशहूर कर गए.
जब – जब ढलका उनका आँचल,
शहर में सरे – आम, कत्ले – आम कर गए.
परमीत सिंह धुरंधर
संभाल ले जो नजर से, सैकड़ों हैं महफ़िल में,
जो नजर को संभाल ले, मैं वो नजर ढूंढता हूँ.
खली हाथ हूँ, तेरी बस्ती में मौला,
मैं तो बस एक नजर ढूंढता हूँ.
परमीत सिंह धुरंधर