इश्क़ रातों को रोता हैं,
हुस्न के पास तो जमाना है मुस्कराने को.
सोचो, उस माँ पे क्या गुजरती होगी,
जिसका बेटा कमाता है, मयखाने में लुटाने को.
परमीत सिंह धुरंधर
इश्क़ रातों को रोता हैं,
हुस्न के पास तो जमाना है मुस्कराने को.
सोचो, उस माँ पे क्या गुजरती होगी,
जिसका बेटा कमाता है, मयखाने में लुटाने को.
परमीत सिंह धुरंधर