बेबसी


हम लूटा दे अपनी जिंदगी जिन आँखों पे.
उन आँखों को शहर की रौशनी भायी है.
हम बुझाएं भी तो ये चिराग कैसे,
इसी की रोसनी में वो नजर आई हैं.

 

परमीत सिंह धुरंधर