भारतीय इतिहासकार


आधे कबूतर बरबाद हो गए,
घोंसला बनाने में.
आधे कबूतर बरबाद हो गए,
घोंसला बचाने में.
लड़ाइयां तो सबने लड़ी,
मगर इतिहासकारों ने लिखा बस,
कितने अंडे मिले कितने घोंसलों में.
पहले तूफानों ने कितनी बार मिटाया,
तो कभी बारिश,
कभी हवाओं ने बिखराया।
फिर कटते पेड़ों ने उजाड़ा।
कबूतरों ने फिर भी,
पंख फरफरा कर,
एक – एक तिनका, फिर चुनकर।
उनको बनाया, सजाया, बसाया।
मगर इतिहासकारों ने लिखा बस,
कितने जोड़े मिले कितने घोंसलों में.
मुग़ल आए, महान बन गए.
तुर्क आए, महान बन गए.
ब्रिटिश आए, महान बन गए.
हम लड़ते रहे, हम बचाते रहे,
कुनबा अपना।
मगर,
भारतीय इतिहासकारों की कलम ने लिखा,
कितने बाज, कितने गिद्ध मिले इन घोंसलों में.

परमीत सिंह धुरंधर